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हे कृष्ण हे कृष्ण हे कृष्ण

हे कृष्ण हे कृष्ण हे कृष्ण

हे प्राण पति हे प्राण वल्लभ हे प्रियतम हे जीवन धन ॥हे प्रेम मेरे हृदय में समा जाओ न प्यारे कि मैं तुम्हें पाकर तुमसे प्रेम कर सकुँ ॥ प्यारे तुम ही प्रेम हो तुम्हीं प्रेम के विषय भी तो कैसै बिना तुम्हें पाये तुम्हें प्रेम करुँ ॥ जब तुम हृदय में पधारते हो तभी तो तभी तो तुम भाते हो ॥ ज्यों ज्यों हृदय में सरसाते हो त्यों त्यों प्राणों में उतरते जाते हो ॥ तुम ही तो तुम्हारा प्रेम हो न प्यारे तो जो कुछ भी अनुभव कराता ये प्रेम वह सब तुम ही तो हो न ॥ तुम्हारे प्रेम की अनुभूति ही तो तुम्हें पाना है वास्तव में ॥ हृदय में उठने वाली प्रत्येक भाव तरंग तुम्हारा ही तो स्व रूप है न प्यारे जो अब तुम्हारे आने से मैं अनुभूत कर  रही वो सब तो तुम नित्य ही मेरे प्रति जीते हो न प्यारे ॥ तुम्हारी मधुर मुस्कान ही तो प्रेम रस है हृदय में ॥तुम्हारी चंचल चितवन ही प्रेम है ॥ तुम्हारा परम शीतल सुकोमल स्पर्श ही तो प्रेम है ॥तुम्हारी अंग सुगंध ही तो प्रेम है ॥तुम्हारे मधुर शब्द ही तो प्रेम हैं ॥तुम्हारी मधुरातीत अधर सुधा ही तो प्रेम है ॥ तुम हो तो प्रेम है तुम ही तो प्रेम हो ॥ जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।।

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