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उज्जवलस्मिता

एक बूंद हूँ छलकी हुयी तुम्हारे हृदय से , केवल एक बूंद .....तुम्हारी मुस्कान ....कैसी है तुम्हारी मुस्कान कैसे कहुँ .....कभी देख ही न पाया तो वर्णन करुँ कैसे , कि कैसी है वह उज्जवलस्मिता .........बस इतना पता कि मेरे जीवन का प्राणों का पोषण है यह स्मित तुम्हारा ..........यह ऐसा रस है मेरे जीवन का जो मैं कभी पूर्ण निरख ही न पाया ....तुम्हारी मुस्कान का चिंतन ही  मेरे रोमावलियों को पुलकित कर देता है ....यह पुलकन कपंन हो मेरी संपूर्ण देह को अवश कर देती है .......और मेरी चेतना न जाने कहाँ कौनसे अनन्त रससिंधु में डूबने लगती है ........हे प्रियतमे ! मेरा रोम रोम तुम्हारी मुस्कान से झरते रस को पीने की चेष्टा करता है परंतु प्यारी इस महान रस को समेटने में , मैं सर्वथा अक्षम हो जाता हूँ .......तुम्हारी यह मधुर स्मित मेरे संपूर्ण अस्तित्व को आत्मसात्  कर लेती है  ......कौन मैं कहाँ .....सुधि बुधि ही बिसर जाती है .....हे स्वामिनी कबहुँ तोरी वह उज्जवल स्मिता मेरे नेत्रों का विषय बनेगी .......कब निरख सकुंगा मेरे प्राणों की पोषण उस मंदमधुर मुस्कान को .......कब कह सकुंगा कि कैसी है वह उज्जवल स्मिता .........

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