नील पीतई...
हमारे युगल सरकार.....प्यारे प्यारी । इनकी यह रस देह नीले पीले कमल पुष्पो के समान लग रही है.....अरी ना री कमल पुष्प नाहीं या युगलवर को रसदेहि तो कमलन के पराग कणन के सार को उज्जवल चंद्रिका में मिलाय केसर में डुबाय पुष्प रस में भिगाय बन्यों है । या को प्रति अंग अंग किशोरन को लावण्य के सार को माधुर्य में पगो , ओस की बुंदकियों जैसन रस कणिकाओं ते झिलमिलाती नव कुसुमित कलिकाओं जैसी लागे है । हाय री ! कैसे वाणी मे समेटू इन रसनलिनसारविग्रह प्यारे प्यारी की रूपरसरासी को .... यह बात वाणी द्वारा कहने मे आ ही नही पा रही।
ऐसे मेरे युगल रस रंग के अनेको खेल खेलते हुये जब अटपटे टेढेमेडे सुकोमल चरणों से निकुंज वीथिन में पग धरते हुए बलखाते सुधिबुधि बिसराये हुये खोये खोये हुए चल रहे हैं तो निकुंज पथ रेणु में सहस्त्रों सखियाँ निज हिय कमल मिलाय मिलाय इन कोमल पदकमलन और इनसे झरते मकरंद को सहेजती जा रहीं हैं ऐसो लग रयो है मानो दो रसकुमुद ही हवा के झोंकों से मद्धम मद्धम लहराते हुये परस्पर सुंगध पर बलिहारी जा रहे हों ।
...और जब यूँ रसपगे रसमगे विचरते हुये ये जरा से मुस्कुरा दिये तो मानो ये कुमुद थोडे थोडे खिल रहे किंतु अगले ही पल ये न जाने अपनी किस रसिकता पर जैसे ही खिलखिलाकर हँस पडे... अहा ! लो पूरे खिल गए हमारे कमल ।
ये प्यारी सखी इन दो रसकमलों से झरित पराग कणिका ही तो है , जिसे ये कमल अपनी इच्छानुसार चाहे जँहा छिटका दे अपने रस की सुगंध बिखेरने को , इनकी मर्जी....
जय जय श्यामाश्याम सखी जु।
निभृत निकुंज , निकुंज कोई रतिकेलि के निमित्त एकांतिक परम एकांतिक गुप्त स्थान भर ही नहीं , वरन श्रीयुगल की प्रेममयी अभिन्न स्थितियों के दिव्य भाव नाम हैं । प्रियतम श्यामसु...
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