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रूप चंद्रिका

प्यारी के रूप की चंद्रिका प्यारे के नैनन माहीं भरि जा रही  .......प्यारे ते अधरन की मुस्कान प्यारी के नैनन माहीं ........शीतल रूप चंदनियाँ पिय ते हिय को ही नाहीं रोम रोम को शीतलता देय रही और पिय सुख मुस्कनिया प्यारी ते रोम रोम ते मधु को और .....और .....और  मधु बनाय रही । रोम रोम प्यारी कू मधु को रस को और गहरो कुंड होई रयो  .........जो रूप बन प्यारे ते नैनन में भरि जाय रयो ....अरि नाय री ! प्यारे ते दोउ नयन मीन हुये सुख ते विचर रये या प्रिया रूपरसकुंड माहीं .....रूप ते कुंड माहीं किलोल करते प्यारे ते दोऊँ चंचल नयन .......कबहुँ इत उत धावत .........जनयो या कुंड को छोर आज पाय ही लेगें .........पर हाय ! जे दोऊँ भोरे मीन जाने ना हैं री या रूपरासी का कोऊं पारावार ही नाय है .....बडी देर इत उत धावत थकि गयो ...अब बस सगरी चंचलता भूल डूबन लागे या के अतल तल मांही ..........प्यारी जैसे समेट लीनी अति नेह ते दोऊँ चपल नैनन कू निज अंक माहीं .......

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