नेक सो अरज
हे करुणावरुणालया श्रीराधाजू मोपे तो कछु भी नाय है स्वामिने कि किंचित भी आपको ध्यान निज ओर आकर्षित कर सकुँ । क्या करुँ स्वामिने कि कोई साधन, जप ,भजनाश्रय, रसिक चरणअवलंबन ,श्रीधाम शरणागति मोपे है ही नाहीं । आप सर्वेश्वरी , जिन्हें श्री सखियाँ सहचरियाँ किंकरियाँ दासियाँ रसिकआचार्यगण ब्रजवासी और स्वयं ब्रजराज नित्य प्रति ध्यावें हैं , जाकी महिमा माधुर्य ऐश्वर्य असीमित है , जो क्या हैं कोऊ नाय जान सके, जो परम आधार हैं जिनसे परे और कछु भी नाय है, जिनसे विलक्षण और अद्भुत कोऊ तत्व है ही नाय ,उन अवर्णनीय , अगम्य , परमअद्भुत श्रीराधिका जू को मैं समस्त गुणहीना प्रेम भाव गंधशून्या जो मलिन हृदया और जिसका प्रेम भी उसके गुणों के समान नगण्य है , किस भांति प्रसन्न करुँ । हे सर्वेश्वरी हे निखिलेश्वरी, हे दिव्यकाम की अधिष्ठात्री, हे रस की अधिष्ठात्री करुणामयी, हे श्यामसुन्दर की प्राणप्यारी प्राणदायिनी प्राणसंजीवनी, हे रसराज जीवनी हे महाभावस्वरूपिनी श्रीकिशोरी जू आपकी महिमा अनन्त मुखों से अनन्त काल तक भी गायी जाये तो अपार ही है । हे परम दयामयी स्वामिनी जू मोरि सुधि लीजो । मुझ अकिंचन अपात्र को भी निज कृपा का भाजन बना लीजो .......हे प्रेम त्याग और समर्पण की साकार मूर्ति श्रीलाडली जू आप ही तो समस्त ब्रज रसलीलाओं की की मूल हो । आप ही श्रीश्यामसुंदर के सुखरूपी श्रीनिकुंज लीलाओं की न सिर्फ धुरी हो वरन आप ही निकुंज स्वरूपिणी हो । हे पियहिय विलासिनी श्रीश्यामा जू मो दैन्यता से रहित दीन पर निज प्रेमसुधा रूपी दृष्टि से नन्हा सा प्रेम बिंदु झरित कर दीजो कि मैं भी आपके चिन्मय रस राज्य में आपका स्वत्व हो विलसती फिरुँ .....ये हृदय मेरा न रहे प्राणेश्वरी आपकी ही प्रेम सुगंध से सुवासित कुसुम हो जावे । हे रसराज रसदा हे नित्यद्रविता मम् स्वामिने निज नैनन की कोरन ते नेक मोहे स्वीकार कर लीजो ऐसे कि तोरे नैनन प्यारे जू के नैनन मों ही मिले भी रहवें और मेरो काम भी बनि जावे .......
तवपदरागआकाँक्षनी
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