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नित नव मनुहार ... नित नव रस चातुरी ! मृदुला

नित नव मनुहार ........नित नव रस चातुरी .............

कौन ! अरे वही रस चोर अपनो .......प्यारी कू रस कूं ऐसो चाव लग्यो है कि छूटत नाय बनो ........सोते जागन बस याहि चिंतन या रसिक भौंरन कूं कि आज कौन विध रस चाख्यूँ ............आज कौन सखि ते रसीली बातिन में उलझाय , प्यारी कूं समीप जावे कूं मनाय लेऊं.................अरी सखि री ! तनक चंवर डुलावन देय न मोय , जब तोरी स्वामिनी विश्राम करें ता ही समय बस चुपचाप पंखो झलुंगो वा के .........अरे ना ना तौं बडो चोर हो , ना जाने कहा करि जाओ पंखा झलन ते बहाने .......अरि (अरी दुस्मन ) हिय ते भाव हिय माहीं राखि ऊपर कुटिल मुस्काय कहवे लागो ,  मैं तोरे पयैैन परूँ ......जो मोय नेकहूं सो सेवा देय दे , मैं कछु नाय करुंगो .........बस पंखो ........मंद मंद मुस्काते रसीली आंखिन ते मनुहार ............ठीक है पर बस नेक सों देर ही , नाय तो .........आहा ! मन में रस कूं लड्डू फूट रयो रसिकसिरमौर ते .........अरे पंखो नाय झलनो या रसलंपट ने , या ने तो प्यारी ते रूप रस कू .............हाय ! कैसी बडी बडी मदभरी , रस छलकाती अखियाँ हैं प्यारी की .......जे मुंदे नैन रस को भरि , पलकन ते ढांप राखे हैं .....जो , जे पलकन कू किवाड़ खुलि जावे तो ऐसो रस उमगेगो यां ते कि मैं तो बह ही जाउंगो ......अरे बहुंगो नाय डूब ही जाउंगो पूरो को पूरो.......आह ! कैसो मधु बरस रयो या मुंदे नैनन ते  ..........छबीले लाल पंखो झलन भूल प्यारी ते मुंदे नैनन ते रस माहीं खोय भये ......... प्यारी जू कबते उठि भयी ......आँखिन में आनन्द , विस्मय और करुना सब एक छलक रयो ...............निकट आय अति नेह ते लाल जू को निहार रईं  ........पूरो कक्ष सखियन की सुमधुर खिलखिलाहटों ते झंकृत होई रयो .........और जे रस कू लोभी मधुकर नैन मूंदे न जाने प्यारी ते कौन से रस कू पान करन में मगन भयो है ............और चंवर ...वो तो कबकूं छूटि चुको कोमल करन ते .............

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