Skip to main content

जावत जुत जुग चरण ललि के , मृदुला

जावत जुत जुग चरण ललि के .......

श्री प्रिया चरण .......कहतो ही नाय बन रयो , पर कहनो है कहनो ही हिय ती प्यास को कछु उपाय होवे न .......नयन मूंद नेक सो हिय माहीं प्यारी जू के चरनन कू दरसन कीजे .....कैसों चरन हैं जे सखि री ! जावक ते सजे .....ना री भोरी अली , जे जावक से ना सजें हैं री ,जे चरन तो जावक को शोभित करें हैं ....जावक कू सौंदर्य ते भरि देेंवें हैं । जे जावक भी कहा है ....प्यारे ते हिय कू गाढ अनुराग जो वेणु रव रूप बरसे है ना री , वा अनुराग कू निकुंजन ते कोमल कोमल फूल पान कर , हिय में छिपा लेवें हैं ....सोई गाढ अरुणिम अनुराग फूलन कू रस होइवे .....याही रसअनुराग भरों फूलन ललचावें ललि के चरन माहीं अर्पित होवे कू .....प्यारी जू के चरनन में वाही फूलन ते रस रूप प्यारे ते हिय  अनुराग कू , जे सहचरियाँ मंजरियाँ  इन फूलन ते ला सजावें हैं .......ऐसो पिय हिय अनुराग रूपी फूलन ते रस ते बने जावक रचें हैं श्री लली के कोमल चरन...... .....अद्भुत अनूप अमल दिवाकर ......आह ! सखी कैसो बखान करुं या चरनन कू .....लली जू के श्रीचरन परम विलक्षण आश्चर्यजनक , ऐसो परम निर्मल भास्कर हैं जाकी कोऊं उपमा संभव ही नाय है .......भास्कर अर्थात् रश्मियों का स्रोत हैं जे चरन ....पर कैसी रश्मियाँ .....महाभाव की अनन्त रश्मियाँ छिटक रईं जा भास्कर ते ......परम निर्मलता कू उद्गम हैं जे चरन , जा हिय माहीं नेक सों उजागर होईं जावे , तो रोम रोम प्रेम प्रकाश ते भरि जावे  .......आलि री जे चरन प्यारे ते हिय मांही नित नवल रसमकरंद बिखरती कमल की अति कोमल कलियाँ ही जान .......जो निज मोहक सुगंध ते प्यारे ते रोम रोम कू महकाती वा कू मुग्ध किये रहवें हैं .....कैसो कमलिनी हैं जे चरन ....अति ही सुंदर हैं री ......कोमल और मनोहर हैं .......अरी कहा बखान करुं या चरनन को .....कमलिनी  ते वरन हैं ,नवनीत ते नरमाई, ओस की बूंदन ते स्निग्धता, गुलाब की पंखुरी ते लावन्य, मकरंद ते सुंगध ,मधुर चंद्रिका ते उजारो ........आहा ! जे प्यारी जू के चरन निकुंजन ती गलियन में यूं शोभित होवे हैं , ज्यूं शरद को पूर्णचंद्र अरुणिम हो ओस ते भींज मधुर ज्योत्सना ते महक रयो .......और रस की निधी जे चरन .....कैसे ....चंद्रमा को निरख सागर तरंगायमान होवे है न ,ऐसो ही ललि ते चरनरूपी रसचंद्र को हिय माहीं निरख निरख प्यारे ते हिय सागर में प्रेम की रसतरंगे खिलने लागें हैं री .......जे चरन न जाने कैसों जादू भरे हैं ........सबरी सखियन सहचरियों और प्यारे की समस्त मनोकामनाओं को पूरन करने वारे हैं .......अरी कल्पवृक्ष कहुं , कामधेनु कहुं या चिंतामणि कहुं जा को ......ना री इन सबन में वो सामर्थ्य कहाँ जो श्रीलली के चरनन मांहि है .......जे सबन तो मांगने पर देवें हैं ना , पर जे अद्भुत कृपा के आकर तो वो भी सहज ही प्रदान करि देवें हैं जो मांगवे की भी पात्रता नाहीं ........हम सब अलिन ते प्रानन की परम निधि श्री चरन ललि के .........

Comments

Popular posts from this blog

निभृत निकुंज

निभृत निकुंज , निकुंज कोई रतिकेलि के निमित्त एकांतिक परम एकांतिक गुप्त स्थान भर ही नहीं , वरन श्रीयुगल की प्रेममयी अभिन्न स्थितियों के दिव्य भाव नाम हैं । प्रियतम श्यामसु...

युगल नामरस अनुभूति (सहचरी भाव)

युगल रस अनुभूति (सहचरी भाव) सब कहते है न कि प्रियतम के रोम रोम से सदा प्रिया का और प्रिया के रोम रोम से सदा प्रियतम का नाम सुनाई पडता है ॥ परंतु सखी युगल के विग्रहों से सदैव युगल...

रस ही रस लीला भाव

रस ही रस लीला भाव नवल नागरी पिय उर भामिनी निकुंज उपवन में सखियों सहित मंद गति से धरा को पुलकित करती आ गयी हैं ॥ प्रिया के मुखकमल की शोभा लाल जू को सरसा रही है ॥ विशाल कर्णचुम्ब...