आह ! कैसो अद्भुत छटा छाई रही सखी री ......तनक देख तो री ,मुंदित नैन प्यारे श्यामसुन्दर ते मुख की रूप माधुरी को ...... प्यारी जू ते चिंतन मों डूबे नयन कैसे आनन्द ते मुंदित भयो हैं .....ऐसो लागे ज्यों कमल की दोऊ कलिकाएँ रस ते भींजीं बस खिलन कू तत्पर होई रयीं .....हाय सखि री ! मोपे तो देखो नाय जा रयो .....जे हरसिंगार ने कैसे अपने फूलन को झार झार या छबिधाम कूं अद्भुत सिंगार करि दियो है .......लहराती अलकावलीन में जे नन्हें फूल ऐसो लालित्य से कौन सजा गया री ........जा में तो राधा राधा लिखा दीख रयो री ........अरी तू भी निरी भोली है री ! और कौन सजा सके ऐसो सुंदर या चपल कू ......जे तो हमारी लाडली ते ही सुकुमार करों की सामर्थ्य है ............दोऊँ सखिन प्यारे ते जे रूप छटा बिखेरती छबि कूं दरसन वरनन श्रीप्यारी जू के रसार्थ ही करि रहीं हैं .......उनके प्रेमिल दृगन ते प्यारी ही झांक झांक निज प्रियतम को निरखन चाह रहीं ..........और इहाँ दोऊँ रसीले दृगन के पीछे कहा चल रयो है ......गहन अनुराग प्यारे ते नैनन माहीं प्रिया हो उतर आया है ........प्यारी कूं दरसन ......आह !.....प्यारी कूं रूपरस पान होई रयो है .......एक एक अंग सुअंगन ज्यों रस में पगे ........सुगंध में डूबे .......उज्जवलता बिखेरते प्रफुल्लित हो किलक रयो हैं .......प्यारे तो डूब चुको प्यारी के नख शिख रूप ते महासमुद्र माहीं ...........आहा ! एसो गाढ़ चिंतन प्यारी ते सुअंगन को कि ........नील वर्ण पीत होने लगो ..........ज्यों ज्यों प्यारी जू हिय ते नैनन में समाय रयी त्यों त्यों पीत छटा आभा ते रंगने लाग्यो प्यारे ते अंग सुअंगन ............
निभृत निकुंज , निकुंज कोई रतिकेलि के निमित्त एकांतिक परम एकांतिक गुप्त स्थान भर ही नहीं , वरन श्रीयुगल की प्रेममयी अभिन्न स्थितियों के दिव्य भाव नाम हैं । प्रियतम श्यामसु...
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