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युगल की अप्राकृत रसतृषा लालसा

युगल रसतृषा लालसा

युगल के हृदय की न जाने कैसी विचित्र स्थिती है । परस्पर का सुख एक ही हृदय में उदित होता और दोऊ रूप में पुष्प के जैसा खिल उठता ॥ दोनों ओर एक सी मधुमय रसमय सुगंध प्रवाहित करता ॥ दोनों ओर परम व्याकुलता ॥ प्यारी चाहें कि प्यारे के चहुं ओर रस वर्षण करती रहुं ॥।प्यारे चाहें कि चहुं ओर से प्यारी का रस पान करता रहुँ   ॥ कभी प्यारी चाहें प्यारे के हित वा को रसपान अनवरत करुँ तो प्यारे चाहें कि प्यारी पर रसवर्षण करतो रहूँ ॥ प्रिया के चहुंओर प्रियतम के अतरिक्त कछु नाहीं और प्रियतम के चहुंओर प्रिया के अतरिक्त कछु नाहीं  । कैसी विलक्षण स्थिती है ना यह ॥ प्रियतम का हृदय प्यारी के सर्वस्व को नित्य समेटे हुये हुये और प्रिया का हृदय प्रियतम को नित्य समेटे हुये ॥।एक रस कमल श्री प्रिया हैं जिनके भीतर प्रियतम मधुकर अनवरत रसपान करते हुये मुग्ध हुये जा रहे हैं ॥।ये मधुकर जितना जितना कमल को रसपान करे है कमल का रस और बढता जावे ॥ बढा रस मधुकर को और और तृषित कर नव नव रसपान को ललचावे ॥ मधुकर की रस लालसा कमल को रस वर्धित करे और रस वर्धन ,मधुकर की लालसा का वर्धन करे ॥।तो प्रियतम के हृदय में विपरीत स्थिती ॥ यहाँ समझना जरा कठिन होगा ॥ कि रसपुंज के चहुंओर मधुकर अर्थात् बीच में रस कमल और चारों ओर से मधुकर रसपान अखंड समान रूप से करता हुआ  ॥।तभी तो प्रिया के चारो ओर केवल प्रियतम ॥ न केवल अपनी समस्त इंद्रियों से प्रिया रस का पान करते हुये ॥ समझने में तनिक कठिन शायद पर सत्य , क्योंकि दोनों दोनों के पूर्णतया भीतर भी और दोनों दोनों के बाहर भी पूर्णतया ॥।यह स्थिति अप्राकृत है अति चिन्मय दिव्यातीत है ॥ तृषित ।। सम्पूर्ण रस भूत इन दोनों की लालसा रसतृषा की है । अप्राकृत रसतृषा । परन्तु प्राकृत जगत की लालसा है प्राकृत जगत में रस । वहीँ प्राकृत रस लालसा कभी चिन्मय हो अप्राकृत रसतृषा लालसा होवै , तब कहीं अनुभव ह्यो सकें युगल रसतृषा लालसा का ... अहा ! रसतृषा लालसा । तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।

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