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फूलन लीला मिलन

फूलन लीला मिलन

सरस झांकी

आज श्री वृंदावन में ग्रीष्म रितु युगल की रस केलि का सुंदर संयोजन कर रही है ॥ सुंदर नील आकाश में तारो के मध्य धवल चंद्र ऐसे सुशोभित हो रहा है जैसै रास मंडल में ब्रजचंद्रमा अपनी अनन्त कोटि गोपांगनाओ के मध्य रस वर्षण कर रहे हों ॥ शीतल सुगंधित मंद समीर बह कर युगल के ताप को कम कर सेवा सुख पा रही है ॥ आज साखियों ने प्रिया को सुंदर हल्के गुलाबी वर्ण के कमल पु्ष्पों के वस्त्र धारण कराये हैं ॥  जिसमें कमल पुष्प से बनी साडी और कमल से ही बन्यो कंचुकी है ॥ संपूर्ण श्री अंगो में सुंदर श्वेत मादक सुगंधित पुष्पों के ही श्रंगार सजाये हैं ॥ऐसी पिय मनभावनी भामिनी को ले सहचरियाँ निकुंज वन की ओर चल पडी हैं ॥ वहाँ प्यारी के मिलन प्रतीक्षा में प्रियतम अकुलाय अकुलाय बार बार पथ की ओर निहार रहे हैं कि बडी देर हो गयी आज कहाँ रह गयी मम् प्राणेंश्वरी ॥ कि सहसा प्रिया के श्री अंगो के सौरभ ने प्रिया के आगमन का उदघोष कर दीना । प्यारे जू के कमल दल लोचन प्यारी के दर्शन हित यूँ खिल गये ज्यों भास्कर के उदित होने पर पुंडरिक ॥मधुर मधुर पायल की झनकार जैसै रस निमज्जन से पूर्व ही पिय को चित्त चोरने को उद्धृत हो रही है। कटि किंकणी की रस आवर्तों में ले जाने सर्वस्व हरिणी ध्वनी प्रिया के समीप आने की सूचना दे रहीं हैं ॥ प्रियतम तो उनके सामिप्य की कल्पना कर ही रस में डूबने लगे हैं तो सखियाँ संभाल रहीं हैं कि कहीं भ्रमर अपनी कुमुदिनी के रसपान से पूर्व ही रसमूर्छित न हो रहे ॥ तो लो पधार चुकीं है रसराज की रस पोषिता अपने प्राण वल्लभ के समक्ष ॥ आह कैसा दिव्यातीत सौंदर्य कैसा मधुरता को भी मधुरता का दान करने वाला श्रंगार ॥।पिय के नेत्र तो मधुकर हो प्रिया मुख कमल पर ही आ विराजे हैं ॥ दो श्याम भ्रमर एक स्वर्ण कमल का मधुपान करने में निमग्न हो चलें हैं॥ ज्यों ज्यों रसपान हो रयो है त्यों त्यों रस तृषा और गहरा रही है ॥ अब केवल दो नयनों से रस प्यास न बुझे लाल जू की सो प्रिया को अंक में भर लीनो और .......॥ रस धारा बह चली है ॥ प्यारी की वेणी में गुंथे पुष्प झरने लगे हैं ॥ दोनों के नेत्र रसनिमग्न हो मुदित हो चले हैं पर प्यारे की अठखेलियाँ तो प्रारंभ ही हुयी हैं अभी ॥ प्रिया की शिथिल हुयी वेणी से निज करावलियों को उलझा दिया है प्रियतम नें ॥ उसे सुलझाने के बहाने से प्रिया के कंचुकी बंद को छू रहे हैं प्यारी उनकी इस शरारत को समझ मन में ही मुस्कुरा उठी हैं पर बाहर से अधरों से अधरों को विलग कर तनिक सी वक्र भृकुटी से पिया को निहारीं तो उनकी इस छवि पे लाल जू को हृदय प्रिया के नयन बाणों से बिंध तडपने लग्यो ॥हृदय के उपचार हेतु और रस तृषा से और अधिक चंचल हो प्यारी को गाढ़ आलिंगन में भर लीनो और  .....॥सब ओर से रस प्रवाह उमड चल्यो ॥
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