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श्रीलाल जू नामावली

श्रीलाल जू नामावली

श्रीरंगीले लाल जू के शुचि नामों को गावें हम , जिससे श्रीरंगीली प्यारी जू की पद प्रीती सहज ही हमारो वरण करि लेवेगी । कैसे मधुर रसीले नाम हैं ये श्रीकुंवर लाडले जू के , रस ते भरे !

श्रीराधावल्लभ ! श्रीराधा जू के प्राणवल्लभ , हृदयवल्लभ । वल्लभ अर्थात् कान्त प्रियतम , माधुर्य  भावसुगंधि से महकता यह नाम ॥ ....... लाडिले ! किसके लाडले है ये , अरे किसके नहीं हैं , समस्त सखिगनों के ,समस्त निकुंज रसभाव की दैदीप्यमान पुंजों के और संपूर्ण भावउद्गमा प्रेममूर्ती श्रीकुंवरी जू के अतिशय प्राण लडैते । नित निज प्राणन से लाड लडावें वे श्रीप्यारी जू इन सलोने सुकुमार हृदयपुष्प को अपने ॥ .........दूल्ह ! जो नित्य नव दुल्हिन श्रीकुंवरी जू को वर हैं । जो सदा उत्साही प्रफुल्लित , नित्य नव मिलन को आतुर , जिनके मन सदैव चटपटी लगी अपनी प्यारी के दर्शनार्थ ॥ ........नित्य किसोर ! जो सदा ही किशोर अवस्था को शोभित कर रहे हैं । श्रीरसीली के नवल प्रेम भाव रस श्रृंगार जिन्हें नित्य नवल किशोर किये रखते हैं । यह कैशोर्य नित्य तो है ही , पर सदैव नवीन भी है प्रति पल इसकी स्निग्धता वर्धित हो रही है । ......कुंजबिहारी भावँतौ ! कुंज अर्थात् रस की गलियाँ , रस के उपवन , रस के भवन । जो सदा श्रीरसधामा रसकुमुदनी के रसिक भ्रमर हो इन रसविथीकाओं में उनके रसीले रसपान में लीन हैं , वे कुंज बिहारी प्रियतम । इन कुंजों में विहार के परे , जो अन्य कुछ भी कहीं है ऐसा जानते ही नहीं , ऐसे श्रीकुंजबिहारी ॥ .........मुखप्यारी चंद चकोर ,आहा !.........प्रेम की , आधीनता की , रसिकता की , विलास की साकार मूर्ति बने हुये श्रीरसिककुंवर लाल प्यारे , जिनके नयन , चकोर की उपमा को भी तिरस्कृत करने को तत्पर हैं , निज प्यारी के मुखचंद्र के अनवरत दर्शनहित । जाके नयन श्रीप्यारी की मुखमधुरिमा का अनवरत पान करते कभी अघाते ही नहीं । ऐसे श्रीप्रिया मुखचंद्र रूप सुधा का पान करने वाले चकोर रूपी प्रियतम हैं ये ॥ ..........रसरंगी ! रस से रंगे हुये ये रंगीले प्यारे । कौन से रस से ! प्रेम के रस से रंगे । श्रीकुंवरी के अनुपम प्रेम से नित्य रंगे हुये रंगीले छबीले ऐसे कि जो भी छूय ले इन्हें वह भी श्रीलाडली के प्रेम रंग से रंग जावे । सबको रंग रहे  इसी प्रेमरस रंग से ये प्रेमरंगीले । ........राधाधनी ! श्रीराधा रूपी महाप्रेममणि को पाकर ही जो महाधनी हुये हैं । श्रीकुंवरी जिनके प्राण की हृदय की एकमात्र परम निधि हैं ऐसे श्रीराधाधनी ॥ ............सुकुवार !  जो परम सुकुमार परम कोमल आहा ! कितने कोमल , इतने की मात्र हृदय के कोमल भाव ते ही स्पर्श करा जावे इन्हें । निखिल सौंदर्य के निधान आनन्द के सागर ये प्रियतम ॥..........कुंज रवन सोभा भवन वर सुंदर सुघर उदार !  ..आहा ! सदा सर्वदा श्रीप्रिया प्रेम के लोभी होकर , कुंजों में रमण करने वाले , शोभा के सागर अपूर्व रूप रसालय , और परम उदार परम कृपा सिंधु अनन्य सहृदय ये श्रीलाल जू ॥........रसिक रँगीलो रंगमग्यौ श्री वृंदावन चंद ! ..रसिकों में सिरमौर ये परम रसिक , किस रस के रसिक लोभी ये , श्रीराधा रस के परम लोलुप , परम अधीर हो , प्रेमानंद से भीजे रहने वाले और श्रीवृन्दावन रूपी आकाश के परम कांतिमान पूर्णचंद्र ये श्रीकृष्णचंद्र ॥ .....विपिनविलासी छवि चहा ! श्रीवृन्दावन रस सिंधु में नित्य विलास केलि में निमग्न रहने वाले , श्रीप्रिया की अचिन्त्य रूपसुधा के लोभी ,कामनाओं के सागर बने हुये ,ऐसे ये श्रीनागर जू ॥.....पिय राधा आनन्द कंद ! श्रीवृंदावनेश्वरी निकुंजेश्वरी प्राणेश्वरी हृदयेश्वरी श्रीराधिका के प्रियतम , ये मोहन परमानंद के घनीभूत विग्रह हैं ॥......रसिकमौली ! रसिकशेखर रसिकशिरोमणि , ना जाने कितने ही नामों को सार्थक करते हुये रस के लंपट हो रहे हैं ॥....... आनन्दमणि मोहन कृष्ण कृपाल ! आनन्द रूपी महामणि महानिधी ,  मोहन अर्थात् मोह लेने वाले । जो अपने सौंदर्य रूप से त्रिभुवन को मोह लेते हैं , अतिशय कृपा के धाम श्रीकृष्ण हैं । जिनकी कृपा सर्वत्र बरस रही है ऐसे परम कृपालु श्रीकृष्ण ॥.........सहज सलौनो सांवरो अंबुज नैन विसाल ! जिनका रूप सहज ही मन हिय प्राणों का हरण कर लेता है , सहज सौंदर्य के धाम , श्यामल कांति शोभायुक्त । जिनके नेत्र अति विशाल और कमल के सौंदर्य को भी लजाने वाले हैं ॥ श्रीहित ध्रुवदास जी कहते हैं कि जो मन के धागे में श्रीलाल जू के इन परम रसीले प्रेममय नामों को मोतियों के समान पिरो कर सदा हिय में धारण करेगा , उसकी रसना श्रीकिशोरी जू की सहज कृपा पाकर नित्य श्रीश्यामसुंदर के रसमय नामों का गान कर पवित्र होवेगी ॥

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