मधुर आसक्त हो प्रीति पुकार उठें नित्य क्षण-क्षण ...मैं तेरी रह जाऊँ ...तुझमें खो जाऊँ और गाढ़ हो अचम्भित भावाणु को सुनाई देवें हिय से महाभाविनि की मधुर वांछायें ...
*मधुर वांछा .........*
ओ रे पिया ........मैं तेरी हो जाऊँ । तुझमें ही घुलमिल कर तुझसी हो जाऊँ ......प्यारे ......श्री प्रिया चरनों पे नमित तोरी दृष्टि हो जाऊँ । श्रीचरनों में तोरी नित्य अनन्त अनन्य गहन निष्ठा हो जाऊँ ..........प्यारे तोरी प्रेम विवशता .......प्रेमाधीनता हो जाऊँ । श्रीरंगीली हित रसमयी रसीली निरखन हो जाऊँ.....कि गहन अति गहन अनुराग हो जाऊँ । तोरे नयनों का उल्लास .......तोरे अधरन की मुस्कान .......तोरे हृदय का मधुर उन्माद हो जाऊँ । तोरे प्रानन का स्पंदन हो जाऊँ ......तोरे रोम रोम की पुलकन हो जाऊँ ........कि तेरे प्रेम का रोमांच हो जाऊँ । तोरे नयनों से छलकता प्रेमदृगबिंदु हो जाऊँ ........कि नव मिलन का नवल उत्साह हो जाऊँ । प्यारे तोरा प्रेमपाश हो जाऊँ ......कि मोहन तोरा गाढ चुंबन हो जाऊँ । तोरा मधुर आमंत्रण हो जाऊँ ......कि पथ निहारती तोरी प्रेम प्रतीक्षा हो जाऊँ । कभी चपलता तो कभी गंभीरता हो जाऊँ .........कभी अधीरता तो कभी अधीरता ही हो जाऊँ । तोरे हृदय से उठ अधरों पे सजा वेणु रव हो जाऊँ ......तोरी प्रेमपुकार हो जाऊँ । पिया रे तोरी व्याकुलता .......तोरी नवतृषा हो जाऊँ......ओ प्रियतम तोरा मधुमय विलास होऊँ ........अरु मधुर अतृप्ति हो जाऊँ ........प्यारे तोरे हिय में उमड़ती अनन्त रसतरंगे होकर तोरी अनन्य प्रेमसमाधि हो जाऊँ .........तुझमें ही घुला मिला सा तोरा सुख हो जाऊँ.........कि तेरी हो जाऊँ .......पिय मैं तेरी हो जाऊँ .....
तेरी मधुर ...सुमधुर ...अतिसुमधुर वांछायें हो जाऊँ ...हे रसीले तृषित तेरी नित रसभीगी गाढ़ तृषा हो जाऊँ । जयजयश्रीश्यामाश्याम जी ।
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