*प्रीति की कलियाँ प्यारी सखियाँ*
*सखी जिसकी प्राणछवि है यह यह युगल श्रीपियप्यारी । नित पगी रहती है , सम्पुर्ण प्राणों से अपने प्राण प्यारे युगल की सेवालालसा में*
हलरावे दुलरावे नित प्राणों से लाड लडावे ।
निज प्राणों की प्रतिमाओं सी युगल छवि पर बलि बलि जावे ॥
*सखी जिसके गीत है युगल का प्रेम और जीवन है युगल सुख*
युगल प्रेम के गीत ये गाती लहराती मुस्काती नवल प्रेम के पुष्प खिलातीं ॥
परम त्याग की मूर्ति मनोहर ये युगल सुख में सब सुख पातीं ॥
*सखी परा-अपरा हो , प्राकृत- अप्राकृत , सर्व विधि से सेवामयी सेवा ही होती हुई*
कभी मंद पवन होकर ये रति श्रम बिंदु सुखातीं ।
कभी रस बिंदु बन बरस गगन से अतिशय मोद छलकातीं ॥
*सखी नव भावों की मालिका , नित नव भाव श्रृंगार श्रीयुगल विहार का*
नित नव मिलन हित साज सजाती नित नव क्रीड़ा विपुल रचातीं ।
नित नवीन श्रृंगार धरा प्यारी को प्यारे के हिय को सरसातीं ॥
*सखी लाडलीलाल लाल को मधुरता देती और डूबी रहती उनके सरस् मधुमय अमृत सिन्धु में*
कभी प्यारी का मान बढाती कभी पिय से मनुहार करातीं ।
छिप जातीं नित प्रीति निशा में फिर भोर पुनः मुस्कातीं ॥
*सखी जो है नित नव युगल श्री उज्ज्वलनीलमणि के समस्त भावश्रृंगार के नवनव रँग*
नन्हें शिशु सों भोले युगल हित प्रीति रीति नित नवल सिखातीं ।
नित रंग नवीन भरें ये नित नव रसपान करातीं ॥
*सखी रागिनियाँ अनुरागियाँ नवरंगबिहारिणी बिहारी जु की , सखी रागिनी प्यारिजु के राग की नवनव अनुरागमयी कलियाँ*
छेड़ राग रागिनियाँ सुंदर मन माहीं उमंग सरसातीं ।
रास रंग की धूम मचातीं नित्य युगल को मोद करातीं ॥
*सखी युगल के नयनों , प्राणेशप्यारी के बाह्य भीतर के स्पंदन पर थिरकती ताल सी*
गातीं देकर सुंदर तान करतीं नृत्य ललित ललाम ।
प्रेम सुवासित युगल हृदय को देतीं ये परम विश्राम ॥
*जयजय श्रीश्यामाश्याम जी*
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