मोहे नेक सो कृष्ण पिवाय देयो........
कौन हो तुम प्रियतम !......परमतम् प्रेम की पूर्णतम् पराकाष्ठा ......पूर्ण समर्पण का चरम स्वरूप ......या परिपूर्णतम् आत्मदानविग्रह ......। गहनतम् प्रीती हो या कोई बावरे ही हो तुम मेरे निश्छल जीवनधन .....अरे तुम तो महाभाव के बीज हो ......या पूर्णआत्मविस्मृति के सागर हो । हे प्रानरसनिधि तुम त्याग की पवित्रतम् महाज्वाला हो या आकुलता की चरमसीमा हो ........। यही तो स्व रूप तुम्हारा , स्व भाव है कृष्ण ......यही तो कृष्ण तत्व है ........यही तो कृष्ण है .......यही पिवाय दो मोहे । कृष्ण अधरसुधा क्या है ......कृष्ण ही तो कृष्ण अधरसुधा है । कृष्ण ही तो कृष्णरूपसुधा है । कृष्ण ही तो चिन्मयरसस्पर्श है । कृष्ण ही तो कृष्णअंगगंध है । कृष्ण ही तो तिरछे चरनकमलन से लिपटे नूपुरों की झन्कार है । कृष्ण ही तो वेणु का रव रव है । कहीं से पिवाओ अरु कैसे भी पिवाओ ......पर प्यारे मोहे तनिक सों कृष्ण पिवाय दो ..........चाहें नेत्रन से पिवाओ या अधरन से .......चाहें कर्णपुटों से पिवाओ या ........ये मधुर मुस्कान पिवाय दो या नेक सों नयनय से रस छलकाय दो ........कहीं किसी आभूसन की रुन झुन पिवाय दो .......तनिक सों पीतांबर सरसराय दो .........प्यारे मोहे तनिक सों कृष्ण पिवाय दो .........पूर्णप्रेमविग्रह नेक सों रोमावली से मोहे स्पर्श करि लेयो .......कि मोहे कृष्ण पिवाय कृष्ण करि लेयो ........रोम रोम कृष्ण करि लेयो न प्यारे ........ मोहे कृष्ण पिवाय दो ........कि मोहे बावरा बनाय दो ........... जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।
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