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हृदय लालसा

हृदय लालसा

मोरे हृदय काम की धारा
युगल हिय प्रेम धारा मिलि जावे
इन प्रानन की चिर अभिलाषा
स्वर्णिम हित अभिलाषा होई जावे
पिय प्यारी के मधुर हृदय स्वर
झंकृत हों हिय वीणा पे मोरे
नित नूतन नवल रागिनी
शोभित हो स्वर राग पे मोरे
युगल प्रेम सौरभ नित
सुरभित हो प्रान पटल पे मोरे
कभी लाल हिय कामना
मोरी रसना पे बिलसे
कभी लाडली उर भावना
मोरे नैनन ते छलके
कबहुं कहुँ पिय ते प्यारी की
कबहुं प्यारी सौं लाल सुनाऊँ
कबहुं रिझाऊँ लाल सनेही
कबहुं प्यारी कू मान मनाऊँ
अनुपम विमल प्रेमरस जोरी
हौं या के मन की होय जाऊँ ।।

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