*सखी......मिलित तनु की एकहिं छाया*
श्री राधाराधा जी । सखी ....कितना सुंदर शब्द है न यह , परंतु इसमें निहित भाव इससे भी कहीं अधिक सुंदर है ॥ कौन है सखी, क्या है सखी ,कैसी है सखी ????
संसार में सखी शब्द से तात्पर्य मित्रता के भाव से लगाया जाता है ॥ परंतु नित्य लीला राज्य में सखी प्रेम की परम उच्चतम परम उज्जवलतम स्थिती का नाम है ॥ युगल प्रेम की पराकाष्ठा है सखी तत्व ॥ *युगल प्रेम* युगल प्रेम... हां, इस युगल प्रेम के भी दो अर्थ हैं ॥ प्रथम है युगल का परस्पर के लिये प्रेम और दूसका है युगल के लिये प्रेम ॥ इसे स्पष्ट करें कि प्रथम अर्थ में क्या रहस्य छिपा है ॥ युगल का परस्पर के लिये जो अद्वितीय प्रेम है उस प्रेम का मिलित वपुः है सखी ॥ प्रिया का लाल के प्रति और लाल जू का प्रिया के प्रति प्रेम है सखी ॥ कहते भी हैं न युगल की मिलित छाया है सखी ॥ जिस प्रकार सूर्य प्रकाश में अवस्थित दो तन आलिंगनबद्ध हो जावें तो धरा पर उनका प्रतिबिंब भी एक ही दिखाई देगा ॥ ठीक वैसै ही नित्यबिहारमय श्री प्रिया-लाल के एकमेक हुये हृदय भावों ने जब एक नवीन विग्रह धारण कर लीना तो प्रकट होती हैं , सखी ॥ यह न समझा जावे कि एक दिन सखी प्रकट हुयी वरन वह तो श्री प्रिया लाल की तरह ही अभिन्न-नित्य तत्व है , प्रीति-प्रिया की सर्वरुपेण सेवा । यद्यपि श्रीप्रिया और लाल जू नित्य एक हृदय - एक प्राण - एक आत्म हैं ... परंतु लीला-रस हेतु दृष्टिगोचर दो होते हैं परंतु यदि उनके एकरूप हृदय को ...एकरूप भावो को एक ही तन में दर्शन करना हो तो दर्शन होगा सखी जू का ॥ लाल प्रिया के समस्त हृदय भावों को उनकी समस्त रस लालसाओं को प्राणों मे समेटे हुये सखी नित्य उन रसमय तृष्णाओं को पूरा करने में लीन रहती हैं । लाल जू के मन में प्रिया के प्रति जो रस कामनाएँ हैं और प्रिया के हृदय में जो रस अभिलाषाएँ हैं वह एक साथ सखी हृदय में खिलती हैं ॥ युगल के हृदयों का एक एक स्पंदन सखी हृदय को तरंगायमान करता रहता है ॥दोनों के हृदय की रस तृषा से सखी हृदय *नित्य तृषित* बना रहता है ॥युगल के परस्पर रस निमज्जित होने पर उनके रस विहार का उज्ज्वल रस इन्हें भी रस प्लावित कर देता है ॥ युगल से परम एकात्मता के कारण युगल केलि चिह्न इनकी देह पर भी स्वतःही प्रकट हो जाते हैं ॥श्री प्रिया जब सखी को देखती हैं तो उन्हें श्यामसुन्दर के दर्शन होते हैं और श्यामसुन्दर जब सखी को देखते हैं तो उन्हें श्री प्रिया के दर्शन होते हैं ॥ क्योंकि दोनों सखी में परस्पर के भावों को ही देखते हैं ॥ अब युगल के इसी परस्पर के लिये प्रेम से सखी का दूसरा अर्थ अर्थात् युगल के लिये प्रेममय स्वभाविक स्थिति है ॥सखी वह जो युगल से प्रेम करे अर्थात् राधा और श्यामसुन्दर से प्रेम करे । तो बताइये जरा कि राधिका से श्याम के अतरिक्त और कौन प्रेम कर सकता है ॥ जिस भी हृदय में श्री राधिका के लिये प्रेम सेवा भाव उदित होता है वहाँ कृष्ण तत्व ही प्रकट है ॥ और संपूर्ण सृष्टि में जिस हृदय में भी श्री कृष्ण के प्रति भावोदय होता है वह मात्र श्री राधिका का ही भाव सीकर है ॥ तो वास्तव में इन दोनों के अतिरिक्त इन दोनों को कोई प्रेम कर सकता ही नहीं ॥ तो जब ये दोनों भाव मिलित होंगें तो उस हृदय में युगल के लिये प्रेम का पारावार होगा या नहीं ॥ होगा, अवश्य होगा , हमारी कल्पना से भी परे ॥ यही हेतु है कि सखी युगल के लिये प्रेम की सर्वोच्चतम् सीमा है ॥ युगल सुख ही सखी का जीवन उसके प्राणों का मात्र पोषण प्राणों का एकमात्र हेतु है ॥ आज तो निजसुख वासना स्थिति को सखी रूपी निर्मल सम्बोधन दिया जाता । किसी सखी को युगल सुख में डूबने पर सर्वप्रथम श्रीप्रियाजु से अपने हेतु सखी सुनने को ना मिले, अर्थात भाव मे श्रीप्रियाजु सखी पुकार कर सम्बोधन न करें तब तक युगलसुख रूपी फल पक कर पूर्ण सखी हो नहीं पाता सखीभाव के भी कई भेद हैं , सेवार्थ यह भेद है इनमें कौन श्रेष्ठ यह चिंतन अनावश्यक है , प्रियतम के प्राणों की नित्य सेवा के लिए अगर प्राणमन्जरियाँ है । तो प्रिया की बहुत सेविकाएं प्रियाजु भाव सौंदय हो सजती है ...श्यामसुन्दर के श्रीतनु पर॥ युगल श्रृंगार है सखियां । अनन्त सखियाँ हैं , युगल के अनन्त भावों की प्रतिमूर्तियाँ ॥ मुख्यतः दोनों की सेवा मानी गयीं हैं अतः एक वे जिनमें श्यामसुन्दर के हृदय भावों की प्रधान्यता होती हैं ॥ उनके भावों की प्रधान्यता के कारण श्री राधा के प्रति अधिक प्रेम तथा सेवा भाव रहता है ॥ तथा दूसरी वे जिनमें श्री किशोरी के हृदय भावों की अधिकता होती है ॥ वे श्यामसुन्दर के प्रति अधिक सेवा भाव युक्त होती हैं ॥ कुछ समभाव भी होतीं हैं जिनमें दोनों के प्रति समान प्रीति तथा सेवालालसा होती है ॥ इन समस्त सखियों की सिरमौर सर्वोपरी समस्त सखियों की प्रधान श्री किशोरी की प्राण जीवनी स्वरूपा हमारी श्री ललिता सखी जू हैं जिन्होंने युगल इच्छा से युगल प्रीति पथ आलोकित करने हित युगल प्रीति लालित्य का दिव्य पथ प्राकट्यार्थ तथा संसार के खोये हुये दिग्भ्रमित जीवों को युगल प्रेम रस रीति का मार्ग दिखा निकुंज प्रवेश कराने हेतु इस धरा धाम पर स्वामी श्री हरिदास जू महाराज जी के रूप में अवतरण हुए ॥ तृषित जयजय श्रीश्यामाश्याम जी । हिय से बोलिये सखी भावित श्री श्रीस्वामी जु रसिक-नृपत्ति श्रीहरिदास जू जी की जय जय जय ॥ युगल प्रेम के पिपासु युगलरस भाव *युगल तृषित* यूटयूब पर सुन सकते है ।
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