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श्रीराधा नाम रस

श्रीराधा नाम रस

श्रीराधा .......श्रीराधा ...........श्रीराधा .........श्रीराधा .........
कण कण श्रीनिकुंजदेश का उच्चारित करता परम मधुर स्वर झंकृतश्रीराधा .......श्रीराधा .......श्रीराधा .......निकुंज उपवन का प्रत्येक पुष्प श्रीराधा ....श्रीराधा ध्वनि से गुंजायमान .....प्रत्येक पुष्प पे मंडराते प्रत्येक मधुकर की गुनगुन में स्वरित .....श्रीराधा ......श्रीराधा ....तरुवरों के पल्लवों की सरसराहट ,जो समीर में गुंजित श्रीराधा .....श्रीराधा स्वर से आंदोलित होकर झूम रहे हैं और क्या कह रहे हैं ....श्रीराधा .....श्रीराधा .........श्रीराधा ......मेघों से झरती नन्हीं नन्हीं रस की बूंदें नभ से धरा की ओर आरहीं क्या गाती हुयीं .....श्रीराधा ......श्रीराधा ......श्रीराधा .....तरु शाख पे बैठी कोकिल सारिका मधुर स्वर से गातीं श्रीराधा ........श्रीराधा ..........श्रीराधा निकुंज वाटिका में किसलय दल चुनती हुयी मंजरी के पदपल्लवों में बंधे नूपुरगण क्या उच्चार रहे .....श्रीराधा ......श्रीराधा .....श्रीराधा .......वा की कटि किंकणी गाती जा रही  .....श्रीराधा .....श्रीराधा ......श्रीराधा .........मंजरी के प्रत्येक आभूषण से झंकृत होती बस एक यही ध्वनि ......श्रीराधा .....श्रीराधा ......श्रीराधा ........वेणी में गुंथे प्रसून उच्चार रहे श्रीराधा .....श्रीराधा .....श्रीराधा पुष्पचयन से हो रहा श्रम नन्हें नन्हें रस बिंदु बन ढलक रहा सुकोमल गात से और क्या गा रहा झरते झरते .....श्रीराधा ......श्रीराधा ............श्रीराधा ........लहराती अलकावलियाँ मुदित हो गा रहीं ......श्रीराधा .......श्रीराधा ..........श्रीराधा .... श्वासों से भी निसृत होती मात्र यही रसमयी पुकार श्रीराधा ......श्रीराधा ............श्रीराधा किसी चंचल मलय ने सरसरा दिया जो मंजरी का आँचल तो घुल गया वही एक रसीला नाम उस सरसराहट में सितार सा ......श्रीराधा .....श्रीराधा ........श्रीराधा ......रोम रोम से महकता यही प्रेममय नाम .....श्रीराधा .....श्रीराधा ........श्रीराधा .......खींच लिया इसी दिव्य नाम सुंगधि ने प्यारे श्यामसुंदर को जो निकट ही कहीं सखाओं संग क्रीडापरायण थे । वश में कर चित्त को जैसे ये कर लेते हैं परमहंसो के विशुद्ध सत्वात्मक चित्त को निज अंग सुगंधि से .......ठीक वैसे ही मन हर लिया गया मनहर का निकुंज वाटिका में श्रीप्रिया सेवार्थ पुष्प चुनती किन्ही मंजरी की पुष्परूपी देह से सुरभित श्रीराधा रूपी मकरंद की मधुरतम सुगंध द्वारा ........कितने अवश .....सहज आधीन ये इसी मकरंद लुटाती नवल मंजरी के ........परम लोलुप रसास्वादन को आतुर रोम रोम से झरती निज प्रिया रस माधुरी के ..........तनिक सो स्पर्श कराय दे प्यारी .............

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