श्री वृंदावन । श्रीप्यारी हिय कण कण कटि किंकणी नुपुर मधुर शब्द रसाल । माथे झूमर तिलक चारु नकबेसर गलमोतियन हार। कज्जल ललित लालिमा अधरन अरु मसि बिंदु सुहावन शिखी पिच्छ चूडामणि मनोहर नील पीत अम्बर फहरावन चूनर कुंचुकी प्रेमरससार । मधुर मधुर रसकेलियाँ मनोहर सखियन की रसझंकार नित नव चातुरी नागर की नित नवल प्रिया को मान नित नव रंग हुलास फाग को नित नव मधु बसंत को राग । नित नव है शरद की सिहरन नित नूतन ग्रीष्म को ताप । नित नव ॠतु उल्लास नित नवल रसयामिनी नितनव मधु दिवस श्रृंगार नित नवल सरोवर नव उपवन नित नव कुंज निकुंज को रास नित नव मुस्कन नव नव चितवन नित नव हाव भाव प्यारी को नित नव प्यारो ललित विहार । नित नव भाव विलास रैन दिन नित नव रस विस्तार । नित सजावें नवल केलि नित नव हास परिहास ।इनको ना जानियों भिन्न जरा भी जे सब वृंदाविपिनविलास । श्रीप्रियाहिय ते उपजे पिय सुखभावित अनन्त विस्तार ।श्रीवृंदावन श्रीवृंदावन श्रीवृंदावन ।। श्रीवृंदावन । श्रीप्यारी हिय कण कण झिलमिलात रस कण सों सिंचित जगमगात कलि कुसुम अतिकोमल मणि सम मधुकर मधुर गुंजार मधुरा कोकिल पिक शुक सारि मराल ।रतन सों दमकत नव दाडिम सुंदर रसाल नव कोपल किसलय नित नवल मंजरी मृणाल । नित नव वेणु हृदय राग नव अधर सुधा सिंधु अपार । नित प्रेम रंजित रजरानी नित नूतन मंजुल श्रृंगार । नित नव पाग रसिया को नित चंद्रिका नव सुहाग । नित नवल चंद्र सुसीतल नवल ज्योत्सना रुचिर सुवास ।हिय भावना सकल प्यारी को अमित प्रेम रस विस्तार ।श्रीवृंदावन श्रीवृंदावन श्रीवृंदावन ।।
निभृत निकुंज , निकुंज कोई रतिकेलि के निमित्त एकांतिक परम एकांतिक गुप्त स्थान भर ही नहीं , वरन श्रीयुगल की प्रेममयी अभिन्न स्थितियों के दिव्य भाव नाम हैं । प्रियतम श्यामसु...
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