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रसजड़ता के निदानार्थ सखी की सेवा

रसजड़ता के निदानार्थ सखी की सेवा

लालसाओं की परमोज्ज्ज्वल लालसा है सखी ...कैसी लालसा ??? *प्रिया मुख निरखत नन्दकिशोर*  ऐसी युगल प्रीति की अनन्त लालसाओं की निधि है  सखी । परिकल्पना मण्डल के बाहर विराजमान नित्य रसराज के महाभाव सुधा में डूब जाना है  सखी । वह आस्वदनीय श्रृंगार , वह आस्वादय लीलाओं की ललिता है सखी । रसजड में शनैः-शनैः तरलता है सखी । और द्रवीभूत प्रीत के अनन्त रँगों के समुद्र का उमड़ता विलास है सखी ।  युगल का लालित्य - युगल का हित - युगल का दिव्यातीत वृन्दावन है सखी । महारसभाव विलास की कुँजी है सखी ......
निकुंज सेज पर नित ही अति गहन आलिंगन में आबद्ध युगल ॥ परस्पर मिलित प्रति अंग-प्रत्यंग ॥ रस में डूबे परस्पर के अपार सुख सार से ये युगल पुष्प ॥ रसजडता में प्रवेश करने को तत्पर से । डूबने अथाह रस सिंधु में कि कोई सहचरी सहसा नुपुर हो झंकृत हो उठी प्रिया चरणों में ॥ आहा कैसा मधुर स्वर ॥ जैसै डूबते को तिनके का सहारा मिल गया ॥ रस सिंधु में डूबने ही जा रहे श्यामसुन्दर को उस रसमयी मधुर झंकार ने पुनः रसपान में पृवत्त् कर दीना ॥।ऐसे ही न जाने कितनी सहचरियाँ नित्य युगल की रसकेलि में बारम्बार उन्हें रसजडता से उबारती रहतीं हैं ॥ कभी श्री प्रिया के नकबेसर का मोती सहसा हिल उठता है तो कभी कर की किंकणी स्वरित हो जाती है ॥ कभी प्रिया नेत्रों में कोई अर्थपूर्ण तरंग बन प्रियतम चित्त को हर लेतीं हैं तो कभी स्वेद अणु बन बिखर जातीं हैं ॥ श्री प्रिया के दिव्य मनोहर अंगों पर छटा बनकर उदित होती रहतीं हैं ये ॥। दोनो डूबते रसातुरों को रसास्वादन के हित पृवत्त रखना ही तो सेवा इनकी ॥ यदि ये सहचरियाँ प्रिया प्रियतम के रस में डूबकर सेवा भूल जावें तो दोनों रसपथिक रसजडता को प्राप्त हो जावेंगें ॥ रस जडता में निमग्न होने पर लीला कैसै घटेगी परस्पर रसपान कैसै कर पायेंगे दोनों ॥ तो इसी हेतु ये रसमयी सहचरियाँ सदा युगल एकांत केलि में भी सहयोगी रहतीं हैं ॥ रस मे डूब सुधि बुधि खोने को आतुर युगल को संभाले रहतीं हैं कि रसभोग बना रहे उनका ॥
उज्ववल नीलमणि के अनन्त श्रृंगार मय रँग है सखी । प्रीत का परस्पर विलासोत्सव होरी पर श्रीश्यामाश्याम के परस्पर सुख की कूँची है सखी , पिचकारी है रँगों की श्रीयुगल की सखी । रँग है श्रीयुगल के श्रृंगार पर सखी । श्री युगल के विचित्र श्रृंगार मय रँगों की मधुशाला भरी भावप्रीत की कुँज है सखी । युगलसुख तृषा की नित तृषित है सखी । निजता यहाँ युगल विलास से ही प्रकट है । द्रवीभूत अनन्त सेवा विलासों की मछलियाँ है यह सखी , श्रीश्यामा श्रीराधारससुधानिधि से जीवन मय । तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम ।

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