पिय सुख चातकी हियरस झरझर
हां प्यारी सखी वहीं .......बस वहीं तो बसी हूँ नित । कहाँ हो श्यामा .....कहाँ हो प्यारी ..... सखि हौं तो नित्य वहीं जीवन सार के हिय मंडल में बसी हूँ । पिय सुख रस सरसी में खिलित कुमुदनी सी । उनके सुख स्पंदनों से नित्य जीवन पाती । उनकी मुस्कान को नयनों से पीने वाली ......अधरों से पीने वाली ......श्वासों से पीने वाली.....प्रति रोम से पीने वाली मीन हूँ री । वा के सुख का प्रवाह ही इन श्वासों का प्राण प्रवाह ह्वै । प्यारे का सुख पूरित हिय ही तो निकुंज .....जहाँ ये सौभाग्या अपने सौभाग्य से इठलाती झूमे । उनका सुख ही मेरा अमिट सौभाग्य ....उनकी प्रफुल्लता ही नित नव श्रृंगार को नवफूल ........उनका उल्लास ही नव नवायमान कैशोर्य मेरा .......उनका उन्मुक्त हास्य ही कपोलन की अरुणाई .......उनका प्रसन्नवदन ही नित नव पीत प्रभा इन अंगन की ........उनका रस में डूबा रोम रोम ही संपूर्ण रतिविलास ......उनके मुदित लोचन ही विशालता इन नयनय की ........उनका हिय कम्प ही चापल्य नयनों का और कहा कहा कहुँ री ......उनके सुख रूपी प्रकाश से खिलित कमलिनी हूँ एक । मम् प्राण पोषिणी सुधा उन्हीं के रोम रोम से झरती नित .........वे श्याम मधुकर जब रसपान करें इस कुमुद पराग का तबहिं तो रसीली कहलावे जे माधवी । वे ही तो नित नयनों से इस प्यारी को चूम इन मुदित पलकन को उघारे हैं ...........ये नयन उनके सुख स्पंदन से ही अस्तित्व जो पाते हैं । वे ही नित आलिंगन देय जीवनदान करें मोहे । उनकी श्वासों से फूटते सुख के झरने ही तो श्वास बन उतरते मम् प्राणों में .......ना .....ना श्वास ही रुकनो लागे है ,जो उनके सुख से घुली मिली समीर न पाऊँ तो .......नेक सो पिय सुख संजीवन जो छूटे तो ना जाने कहा हो जावे ह्वै, मोहे प्राण निकसो लागे हैं .......सखि री उनके सुख सिंधु में विचरती मीन हूँ बस ......मेरा जीवन मोहन सुख धारा ........और वे सदा जीवन रस पिलाते मोहे ......मेरे जीवन के नित जीवन ..... जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।
Comments
Post a Comment