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श्रीराधावल्लभ लाल स्वरूप और रसिक आश्रय

श्रीराधावल्लभ लाल स्वरूप और रसिक आश्रय

आहा कैसी अद्भुत छवि है सखि री ॥ बता तो तनिक कौन दीखें हैं या में ॥क्या कहा श्यामसुन्दर ...ना री तो फिर प्रिया जू ....अरी ना री ॥ नेक सो रसिकों के श्री चरणों में प्रणाम तो कर री ॥ रसिकों की कृपा ते उनके भाव का अंजन निज आँखिन में लगा तो तनिक तब ही तो खुलेगा यो आवरण ॥ अरी हाँ री ये तो युगल हैं हमारे युगल ॥सच री ये ही तो सांचों युगल स्वरूप प्रिया लाल जू का ॥ हमारी द्वैत ही देखन की अभ्यस्त ये प्रेम शून्य आँखें सदा दो पृथक रूपों में ही तो खोजतीं हैं न उन्हें ॥ श्यामसुन्दर तो यहाँ है पर श्री राधिका कहाँ । कहाँ हैं राधिका .....अरे प्यारी तनिक रसिकाश्रय तो ले फिर देख कहाँ नहीं हैं राधा ॥ नेक सी रसिक चरन रज ही उठा नेत्रों पर मल ले फिर देख सारी मलिनता कैसे छंट जावेगी ॥ वे अनन्त कृपा स्वरूप तेरे हृदय मे सबरे रहस्य स्वयं ही उदघाटित कर देंगे री ॥ उन्हीं रसिक शिरोमणियों ने तो पहले ही या जगत पर अनन्य कृपा कर यह परम दुर्लभ निकुंज रस संसार में प्रकाशित कर दीना है ॥ वह गूढ़ रहस्य वह गोपनीय युगल रस केली अपनी अपार करुणा से हम जीवों के हितार्थ पूर्व ही उदघाटित कर चुके वे रसिकवर ॥ जो रहस्य जन सामान्य के सन्मुख खोल दिया क्या आश्रय लेने से हमारे हृदय में न प्रकाशित करेंगें वे दयानिधि ॥ तो आलि री चरण शरण पाले रसिकों की तू भी ॥वे ही उजागर कर देंगे यह अद्भुत रस रहस्य कि कहाँ हैं या रूप में श्री राधा ॥ अरी प्यारी वे तो श्याम के रोम रोम समायीं हैं ॥श्यामा रस सिंधु में डूबकर उसमें स्वयं को खोकर वही होकर तो दर्शन दे रहे ये नवल बिहारी नवरंग बिहारी ॥श्यामा में  डूबकर बस श्यामा हो जाने की परम तृषा ही तो साकार हो रही है यहाँ ॥ कैसे चैन पडे हृदय को प्यारे के कि निज प्रियतम से पूर्ण अभिन्नता पूर्ण अभेदता ही तो प्रेम पूर्णता है न ॥ तो प्रिया में सर्वस्व खोकर भी हृदय की प्यास न बुझ रही लाल जू की तो प्रिया ही हो गयें हैं वे ॥समस्त श्रृंगार धारण कर लीने हैं प्यारी के ...पर क्या ये आभूषण श्रृंगार मात्र ही हैं..... ना री ॥ ये तो उस महाभाव अतल सिंधु की अनन्त भाव लहरें हैं सखी ॥ निज प्रिया के अद्वितीय प्रेम भावों को ही स्वीकार कर लीना है इन्होंने प्रिया होने की आकुलता में ॥ या स्वरूप (श्रीवल्लभ जू )में प्रिया को खोज रही न तू ...अरी प्रियतम को खोज वहाँ ॥ वे ही खो गये हैं प्रिया तो सन्मुख हैं री ॥ प्रिया में डूबे हुये खोये हुये प्रियतम हैं ये या प्रियतम को छिपाये हुये प्रिया ॥ यही स्वरूप तो हृदय निधी है रसिकवरो की प्यारी ॥ तो उनकी हृदय निधी की झलक पाने को उन्हीं के पावन चरणों में प्रणत हो जावें री हम ॥
जयजय श्रीश्यामाश्याम जी

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