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Showing posts from February, 2018

श्री वृंदावन

श्री वृंदावन । श्रीप्यारी हिय कण कण कटि किंकणी नुपुर मधुर शब्द रसाल । माथे झूमर तिलक चारु  नकबेसर गलमोतियन हार। कज्जल ललित लालिमा अधरन अरु मसि बिंदु सुहावन शिखी पिच्छ चू...

रसजड़ता के निदानार्थ सखी की सेवा

रसजड़ता के निदानार्थ सखी की सेवा लालसाओं की परमोज्ज्ज्वल लालसा है सखी ...कैसी लालसा ??? *प्रिया मुख निरखत नन्दकिशोर*  ऐसी युगल प्रीति की अनन्त लालसाओं की निधि है  सखी । परिकल्प...

झंकृत रोम-रोम से युगल नाम

झंकृत रोम-रोम से युगल नाम सब कहते कि प्रियतम के रोम रोम से सदा प्रिया का और प्रिया के रोम रोम से सदा प्रियतम का नाम सुनाई पडता है ॥ परंतु युगल के विग्रहों से सदैव युगल नाम झंकृ...

मर्म सरस् प्रसंग

सरस् प्रसंग एक बार एक मयूर श्री नन्दनन्दंन की प्राप्ति की अभिलाषा से ब्रज मंडल में आया ॥ श्रीब्रजराजकुंवर के दर्शनों की हार्दिक अभिलाष लिये नंदभवन के ड्योढी पर आकर बैठ म...

आनन्द

आनन्द आनन्द ....सृष्टि का आधार तत्व । जीव सदा आनन्द का पिपासु है । जीव भगवान की बहिरंग शक्ति , जो सदा आनन्द बिंदु को पाने के लिये चेतन है । और आनन्द स्वरूप भगवान जो नित्य आनन्द दा...

प्रेम

प्रेम ! ह्दय की धरा पर अवतरित होता रसमय भावस्वरूप प्रेम । हृदय की असीम अनन्त गहराइयों में विकसित होता कि उसे छूने के लिये भीतर और भीतर उतरना होता । इतना सूक्ष्म कि वाणी की सा...

पिय सुख चातकी हियरस झरझर

पिय सुख चातकी हियरस झरझर हां प्यारी सखी वहीं .......बस वहीं तो बसी हूँ नित । कहाँ हो श्यामा .....कहाँ हो प्यारी ..... सखि हौं तो नित्य वहीं जीवन सार के हिय मंडल में बसी हूँ । पिय सुख रस सरसी म...

खंडता से अखंडता

खंडता से अखंडता बहुत विचित्र सा विषय है जो लिखने का कहने का मन बार बार हो रहा है । संसार और इसमें उपलब्ध विभिन्न अनुभूतियों के संदर्भ में । हम जीव (मनुष्य)कितने संकीर्ण कितन...