रसजड़ता के निदानार्थ सखी की सेवा लालसाओं की परमोज्ज्ज्वल लालसा है सखी ...कैसी लालसा ??? *प्रिया मुख निरखत नन्दकिशोर* ऐसी युगल प्रीति की अनन्त लालसाओं की निधि है सखी । परिकल्प...
झंकृत रोम-रोम से युगल नाम सब कहते कि प्रियतम के रोम रोम से सदा प्रिया का और प्रिया के रोम रोम से सदा प्रियतम का नाम सुनाई पडता है ॥ परंतु युगल के विग्रहों से सदैव युगल नाम झंकृ...
सरस् प्रसंग एक बार एक मयूर श्री नन्दनन्दंन की प्राप्ति की अभिलाषा से ब्रज मंडल में आया ॥ श्रीब्रजराजकुंवर के दर्शनों की हार्दिक अभिलाष लिये नंदभवन के ड्योढी पर आकर बैठ म...
आनन्द आनन्द ....सृष्टि का आधार तत्व । जीव सदा आनन्द का पिपासु है । जीव भगवान की बहिरंग शक्ति , जो सदा आनन्द बिंदु को पाने के लिये चेतन है । और आनन्द स्वरूप भगवान जो नित्य आनन्द दा...
प्रेम ! ह्दय की धरा पर अवतरित होता रसमय भावस्वरूप प्रेम । हृदय की असीम अनन्त गहराइयों में विकसित होता कि उसे छूने के लिये भीतर और भीतर उतरना होता । इतना सूक्ष्म कि वाणी की सा...
खंडता से अखंडता बहुत विचित्र सा विषय है जो लिखने का कहने का मन बार बार हो रहा है । संसार और इसमें उपलब्ध विभिन्न अनुभूतियों के संदर्भ में । हम जीव (मनुष्य)कितने संकीर्ण कितन...