*हे कृष्ण हे कृष्ण हे कृष्ण - हे प्रेम* हे रसप्राण ...हे प्राणवल्लभ ...हे प्रियतम ...हे जीवनधन ॥ हे प्रेमरँग प्राण मेरे हृदय में समा जाओ न प्यारे कि मैं तुम्हें पाकर तुमसे प्रेम कर स...
रूपमाधुरी नन्दतनय की ........ श्रीश्यामसुंदर की रूप माधुरी .......आहा ! क्या वर्णन संभव है श्रीप्यारेजू की अनिर्वचनीय रूपराशि का ....अनन्त सौंदर्य की अनन्त पयोधि श्रीकृष्ण रूप ........माधुर...
प्रेम में आराध्य की निजता अपनी होती है ...... कहा गया कि स्पष्ट करुँ ! परंतु कभी कभी कुछ भाव ऐसे होते हैं जो मात्र ह्रदय से अनुभूत किये जा सकते हैं ..... इसे अनुभूत करने के लिये प्रेम की ...
प्रीति आभा ..... प्रीति की अपनी ही आभा होती है ....अपना ही विलास और विस्तार , जो सर्वत्र से हट केवल एक पर केंद्रित होती है , और पुनः तरंगवत फैलकर सबको समेट लेना चाहती है । प्यारा अथवा ...
प्रीति तट ...... प्रेम ! एक यात्रा , इस तट से उस तट तक। अपने हिये से उनके हिय तक .....इस तट मैं हूँ अपने हिय की प्यास लिये , तडप लिये पीडा विरह वेदना लिये ......उस तट केवल प्रियतम और उनका हिय । सब क...
श्रीराधा यह प्रश्न सर्वसाधारण के मन में आना स्वभाविक है , कि जब मात्र 11वर्ष की आयु में श्रीकृष्ण ने श्रीवृंदावन से मथुरा गमन किया , तो गोपियों के संग रास कब किया ?क्या यह कथावा...
छूत को रोग ... .. हाँ सखि री , जे मयूरमुकुटी का आकर्षण छूत का रोग ही तो ह्वै.....अब कोई आपत्ति मति करियो जी हमपे.....हम साँचि कहे रहे । तुम कहोगे कि कैसे !......तो कहो छूत को रोग कैसे फैले !.......देखन ते ......
सखि विरह सखि का निज कुछ ह्वै तो वो दोऊ प्राणलाडिले ह्वैं। सखि युगल के ह्रदय का प्रकट स्वरूप .....युगल का पारस्परिक विरह ही सखि का विरहानल ......प्राण विकल होवें ह्वैं.....तप्त होते ह...
रस ....... क्या लिखुँ तुम्हारे संबंध में ! क्योंकी वाणी विषय जो नहीं तुम , पर फिर भी जी ललचा रहा कि किंचित तो तुम्हारा परिचय होवे । तो कुछ अपने मन को , कुछ मति को , कुछ हिय को , कुछ शब्दों स...