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लखि जिन लाल की मुसक्यान ...

लखि जिन लाल की मुसक्यान .........

लाल की मुसक्यान .....आह !....कबहुँ निरख्यो हो री , वह भुवनमोहिनी मुस्कान ........ना जाने कौन सो टोना ह्वै वा में । लालन की यह रसीली मुस्कान कैसो सहजता सो सब कछु चोर लेवे है छिन माँही ...... पलक झपक्यो अरु सब कछु छिन गयो ......सखि री ! ना जाने कितने जनम सों वेद रीती को पालन करो , ना जाने कितनो शरीर तप माँही तपाये दीन्हो , ध्यान जप पूजा आराधन करत करत युग बीत गये  , पर अजहुँ जो मधुर मुसक्यान इन नैनन को सन्मुख दामिनी सी कौंध गयी , तो जे सब ना जाने कहाँ बिसर गयो । युगों की जोरी साधन सम्पदा मनहर की मधुर मुसक्यान ने एकहुँ दरस ते चोरी करि लीनो ........ कौन साधन कौन तपस्या कौन ध्यान ......यहाँ तो अपनेहु की सुधि नाहीं शेष रही अब ........ना जाने कौन कौन दुर्गम पथ ते चल्यो , पर उस एक बंक स्मित ने अपनो माधुर्य के ऐसो गहन सागर में डुबाये डाल्यो कि जे सब साधन यों घुली गयो ज्यों नमक की डली .........जे सब जप तप नियम तबहुँ तक ही साथ निभावें हैं जब तक रसीले लाल जू के रस की कोई नन्हीं सी बूंद हिय पे नाहीं गिरे ह्वै । सखि ! ज्यों कोई कुशल जोद्धा अवसर दिये बिना ही प्रान हरि लेवे ह्वै, वैसे ही उन रसीले नागर ने अपनी मुस्कान को ऐसो बान मेरो दृगन पे चलायो कि नैनन से होकर सीधे हिय पे उतर गयो ........अब काहू की सुधि नाय बचो री .....ऐसो लागे ह्वै , कि उनके मधुर अधर पल्लवो पे विराजित मृदु मुस्कान से झरते मधु के सिंधु में , हौं सगरी अवश होय डूबी जाय रही हूँ .......ऐसो लागे है कि इतने जनम वृथा ही गवाये दीन्हे । रस की सम्पत्ति तो अजहुँ ही पायो री .......ऐसो रस जो मोरे सम्पूर्ण अस्तित्व को ही रसित करि दीन्हों । जे लाल की मुस्कान ना है री ..........जे तो ह्वै रस की सम्पत्ति ..........रसिको की सम्पत्ति.......

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