Skip to main content

महाभाविनी का भाव साम्राज्य ...

महाभाविनी का भाव साम्राज्य....

एक होकर अनन्त हैं वे और अनन्त होकर पुनः एक ही । उनके चिन्मय प्रेम राज्य की समस्त भाव राशि वे स्वयं ही तो हैं । समष्टि का अणु अणु उन्हीं महाभाविनी से भावित उन्हीं की सत्ता से अस्तित्ववान ।प्रत्येक हृदय का स्पंदन स्वयं उन्हीं के हृदय का स्पंदन है । प्रत्येक नेत्र से झरते प्रेम मुक्ता उन्हीं के हृदय का रस है । प्रत्येक स्पर्श स्वयं उनका आह्लादित स्पर्श है ।प्रत्येक भाव रूपी श्वास उन्हीं की श्वासें हैं । प्रत्येक की अंग गंध उन्हीं की सुगंधि है । प्रत्येक वृत्ति उन्हीं की चित्तवृत्ति है ।  प्रत्येक समर्पण स्वयं उनका नित्य समर्पण है । अनन्त नेत्रों में समा वे ही तो निहार रही अपार प्रेम से निज प्यारे को । अनन्त भावपूरित वाणी उन्हीं के ही तो हृदयोद्गार हैं । उन अनन्त महासिंधु का नन्हा सा कण बिंदु हैं हम । उनसे पृथक हमारा कोई अस्तित्व ही कहाँ है ।एक ही सूर्य अनन्त जलराशियों में प्रतिबिंबित हो रहा है । परंतु सभी प्रतिबिंब भिन्न रंगों के भिन्न रसों से भरे हुये होकर भी एक ही ।
प्रियतम को नित प्रेम सो भाव सों निहारती अँखियाँ .... वो पुलकित द्रवित हृदय जो पिघल पिघलकर श्याम के रोम रोम में समा जाने को अकुलाता है  ..... आपकी ही अनन्त सत्ता का अणु सर्वत्र है स्वामिनी । जैसे अनन्त आकाश का कोई बिंदु । उनका सुख क्या है ......  ये सुख भी तुम्हारा स्वत्व है । यहाँ वहाँ न जाने कहाँ कहाँ हो तुम प्यारी ।समस्त को अपने हृदय में समेटे , अपने हृदय को समस्त में बिखेरे । न जाने कितने रंगों से अपने प्रियतम को नित्य रंग रही हो । न जाने कितने रूपों से रसपान कराती हुयीं उन्हें । न जाने कितने पात्रों में स्वयं को भर लिया प्यारी । अणु अणु कण कण केवल तुम हो श्रीस्वामिनी । हे किशोरी केवल तुम्हीं हो प्यारी जू केवल तुम ही केवल तुम ....

Comments

Popular posts from this blog

निभृत निकुंज

निभृत निकुंज , निकुंज कोई रतिकेलि के निमित्त एकांतिक परम एकांतिक गुप्त स्थान भर ही नहीं , वरन श्रीयुगल की प्रेममयी अभिन्न स्थितियों के दिव्य भाव नाम हैं । प्रियतम श्यामसु...

युगल नामरस अनुभूति (सहचरी भाव)

युगल रस अनुभूति (सहचरी भाव) सब कहते है न कि प्रियतम के रोम रोम से सदा प्रिया का और प्रिया के रोम रोम से सदा प्रियतम का नाम सुनाई पडता है ॥ परंतु सखी युगल के विग्रहों से सदैव युगल...

रस ही रस लीला भाव

रस ही रस लीला भाव नवल नागरी पिय उर भामिनी निकुंज उपवन में सखियों सहित मंद गति से धरा को पुलकित करती आ गयी हैं ॥ प्रिया के मुखकमल की शोभा लाल जू को सरसा रही है ॥ विशाल कर्णचुम्ब...