दुर्लभता ..........
आहा !.....वो हिय में समाने वाली ह्रदयहारी छवि .....कैसो रूप कैसो श्रृंगार ..कैसी महक कैसो स्पंदन कैसी आकुलता कैसी प्रतीक्षा ....वो दिख दिख के छिपना , वो छिप छिप के दरस दिखाना , एक बार ...बस एक बार पाये दरस उस मनमोहिनी छवि के ......अब दिन रैन वही चिंतन .....कैसो रूप था , कैसो चितवन थी ......... अब कब मिलोगे हाय ...कब पुनः तोरे सन्मुख होय झाकुंगी प्यारे ......कब पुनः तोरी जय जयकार की धुनि मेरे कानों में रस घोलेगी ....कब तोरे कंठ में पडी कमलमाल की सुगंधि प्रानो को रससिक्त करेगी ......कब ...कब ...कब ...दिन रैन बसी वही छवि प्रतीक्षा में .....प्रतीक्षा बन गये मेरी .......
एक आस ....एक लगन ...एक प्यास ....यही तो वो पारसमणि है जो नन्ही सी चिंगारी को विशाल विरह ज्वाला बनाती है .....जो नन्हे से अंकुर को बिसाल वृक्ष में बदल देती .......यह दुर्लभता ...यही तो वह रज्जु है जो देह के कहीं भी होने पर , मन और चिंतन को , ह्रदय और प्रानन को खींच लेती वृंदावन की उन वीथियों में ......सहज ही उडा ले जाती चित्त को रमण जु के बिहारी जु के प्रांगण में ............ यही दुर्लभता तो वह कसौटी है , जिस पर कस ही वे प्रेममुक्ता प्रदान करते .....यही तो वह व्याकुलता है तडप है , जो उन्हें नयनों से प्रानों तक ले जाती ......और प्रान ही बना देती ...तो परम वरेण्य है यह दुर्लभता ......पर अब कहां रही ये अनमोल निधि ! अब तो सर्वसुलभ बना लिया हमने उन्हें ......चाहें जब देख लो , चाहें जहाँ देख लो .....हाथ में यंत्र है और यंत्र में वे .......अब तो इतने सुलभ कि हिय तक ले जाय सहेजने की जरूरत ही नही .....वो सन्मुख होयें , तो नैनन में बंद कर नैन खोलने से भय ही लागे कि ............पर अब दूर कहाँ , नित देखें तो हैं वो सिंगार ....वो दरस .....तो कहां भई व्याकुलता ! एक दिना देखे थे उन्हें ...नैन मींच बार बार खुद को वहीं होने को ढांढस देवें अब तक .......हाँ वहीं हूँ ...बस वहीं.....ये भावना गाढ होती दुर्लभता से ही..........पर हम तो खूब वितरण कर रहे उन दुर्लभ दरसनो का .....कहीं बल्लभ जू कहीं बिहारी जु ....कहीं रमण जू......कितने उदार हो गये हम ...कि उस दुर्लभ निधि को सुलभ बना लिया । दुर्लभ तो हो गयी अब , वो तडप .......नैनन की वो प्रतीक्षा ........तो बाट निहारना .....रमण जु की गलियन में नंगे पथ चलने की लालसा.........वो बिहारी जु के पर्दे के हटने की प्रतीक्षा ........वो बल्लभ जु के कर में सजे उस नीलकमल की छटा को नैनों में समेट लेने की प्यास ...........
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