रूपमाधुरी नन्दतनय की ........ श्रीश्यामसुंदर की रूप माधुरी .......आहा ! क्या वर्णन संभव है श्रीप्यारेजू की अनिर्वचनीय रूपराशि का ....अनन्त सौंदर्य की अनन्त पयोधि श्रीकृष्ण रूप ........माधुर...
प्रेम में आराध्य की निजता अपनी होती है ...... कहा गया कि स्पष्ट करुँ ! परंतु कभी कभी कुछ भाव ऐसे होते हैं जो मात्र ह्रदय से अनुभूत किये जा सकते हैं ..... इसे अनुभूत करने के लिये प्रेम की ...
प्रीति आभा ..... प्रीति की अपनी ही आभा होती है ....अपना ही विलास और विस्तार , जो सर्वत्र से हट केवल एक पर केंद्रित होती है , और पुनः तरंगवत फैलकर सबको समेट लेना चाहती है । प्यारा अथवा ...