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तत्सुख

तत्सुख

एक नन्हीं सी दीन सी भाव संयुता  नन्हा सा अति साधारण पुष्प लायी है प्यारे के लिये ॥ प्रियतम क्या ये पुष्प स्वीकारोगे ॥ आहा ....एसा सुंदर पुष्प तो मो पे कोई है ही ना । कहाँ से लायी तू । कितना प्रेम करती मोहे । ला तो ।झट से खींच हाथ से तुरंत पाग में खोंस लीना ब्रजराजकुंवर ने ॥ हृदय नाच उठा भाव कणिका का और उसे प्रसन्न देख ब्रजराज का ॥
प्यारे ये जो लेख हैं तुम स्वीकार कर लो न निज नाम जोड दो कि तुम्हारे होंगे तो बहुत सुख होगा मुझे ॥ तुम्हारे लेने से  सुखी होजाउंगी ॥ तुम्हारी प्रसिद्धि में भागीदारी नहीँ चाहिये बस तुम्हारे को सब प्रेम करेंगें तो अपार सुख होगा मोहे ॥ बेवकूफ तेरे लेखो से यश होगा क्या मेरा ?? हजारों लेख लिख चुका इतने वर्षों में ॥मूर्ख कहीं की ॥
पर श्यामसुन्दर ने तो न कहा कि मैं तो स्वयं पुष्पों का मूल हूँ । अनन्त पुष्प मेरी मुस्कान से खिलते हैं तू क्या ये साधारण सा रंग हीन गंध हीन पुष्प दे रही मोहे ॥ मेरे लिये लायी बस ये सुनकर ही बौरा गये हैं कन्हाई ॥
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