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Showing posts from March, 2020

अपनत्व में प्रीति

*अपनत्व में प्रीति * प्रेम तो वास्तव में अपनत्व में ही होता है , जो निजतम हो अर्थात् आत्मियता अभिन्न हो वहीं ...निज रस में ही । परता - पराये तत्व में संभव ही नहीं प्रेम । पर की प्रति...

श्रीप्रिया चरण तृषित

*श्रीप्रिया चरण* श्रीप्रिया पद पद धरती ...श्रीप्रिया चरण आह  सखी री प्राण सर्वस्व श्रीप्रिया कोमल पद मकरन्द ! सहज सरल सरस उर-मंडल (हृदय) में बिहरते मेरी प्रिया के कोमल सुकोमल स...

रस चैतन्य तृषित

योगमाया की सेवा है लीलार्थ विस्मरण देना । जिससे तत्काल का रस प्रकट हो श्रीहरि को । निकुँज में वह रँगमय सँग होते श्रीप्रिया के क्योंकि निकुँज की सब लीला तत्सुखमयी है । तो वह...