Skip to main content

भाव काव्य लहरियाँ

1
मिटे सभी विषाद घनेरे
छायी उर अन्तर तव प्रीती
दूर हटे भ्रम के अंधियारे
मिटे सभी क्लेश मति के
थी व्यथा अपार ये मन में
हरि प्रीती पथ भटक गयी हूँ
खोई क्यों भव तरंग में
क्यो पिय चरणों से छिटक गयी हूँ
नहीं खोज पाती थी कारण
इस आत्यंतिक प्रेम का प्रियतम
समझ रही थी विकार जो अपना
मन की चंचलता वासना
परवशता आखिर क्यों इतनी
क्यों अखंड चिन्तन है इतना
उद्घाटित अब हुआ है भीतर
तेरी ही अनन्य प्रीती अविरल
तेरी प्रीति ही खेल रही है
धर के ये दो रूप हे मनहर
न भटकी ना भटकने दोगे
सदा रखा तुमने उर भीतर
था वो तेरा ही प्रेमालिंगन
केवल तुम ही हो प्रतिपल
कभी नहीं पतन है संभव
जब तुमही हो हित चिंतक
बहेगी अब अविरल प्रवाह से
नहीं बनुंगी बाधक इसमें
तुम ही तुम से खेल रहे हो
है खेल तुम्हारा अति मनमोहक
ना बाकी हूँ इधर मैं जीवन
ना बाकी है उधर "वह"
केवल तुम ही तुम हो
हे मेरे जीवन और उर धन ॥

2
हे मम् उराकाश चंद्रमा
तव मधुर चंद्रिका छिटक रही है
भरी हुयी है उर तव प्रीती
मधु सौरभ सी महक रही है
तेरी प्रीति की ही किरणें
उन प्राणों में चमक रहीं हैं
तेरी ही प्रेममयी दृष्टि
उन नयनों से झलक रही है
तेरी अधर सुधा मनमोहन
उन अधरों से छलक रही है
तेरा स्पर्श की मादकता ही
उन अंगों में सरस रही है
तेरी प्रेम परवशता ही
उस वाणी से बिखर रही है
तेरी ही उदारता वो पावन
जग में खिलकर निखर रही है
है कौन कहाँ दूजा अब कोई
केवल तुम ही शेष हो प्रियतम ॥

3
कभी दूर ना जाऊँ प्रियतम
कभी ना तव हिय झुलसाऊँ
कभी ना खुद को बुरा भला कह
कभी ना तुमको पीडा पहुँचाऊँ
कभी ना मांगू क्षमा निरर्थक
कभी ना तव उर दुख उपजाऊँ
सदा रहूँ आलिंगित उर से
बस पिय मन मोद बढाऊँ
महकुँ सदा तव प्रीति से प्यारे
पिय के प्राणन कूँ महकाऊँ
मुस्काऊँ तुमको निरख निरख कर
कभी सरसाऊँ कभी लजाऊँ
तेरी प्रीति जीवन मोरा
दूजा ठौर कहाँ मैं पाऊँ ॥

Comments

Popular posts from this blog

निभृत निकुंज

निभृत निकुंज , निकुंज कोई रतिकेलि के निमित्त एकांतिक परम एकांतिक गुप्त स्थान भर ही नहीं , वरन श्रीयुगल की प्रेममयी अभिन्न स्थितियों के दिव्य भाव नाम हैं । प्रियतम श्यामसु...

युगल नामरस अनुभूति (सहचरी भाव)

युगल रस अनुभूति (सहचरी भाव) सब कहते है न कि प्रियतम के रोम रोम से सदा प्रिया का और प्रिया के रोम रोम से सदा प्रियतम का नाम सुनाई पडता है ॥ परंतु सखी युगल के विग्रहों से सदैव युगल...

रस ही रस लीला भाव

रस ही रस लीला भाव नवल नागरी पिय उर भामिनी निकुंज उपवन में सखियों सहित मंद गति से धरा को पुलकित करती आ गयी हैं ॥ प्रिया के मुखकमल की शोभा लाल जू को सरसा रही है ॥ विशाल कर्णचुम्ब...