*परस्पर प्राणरस*
श्यामा जबसे आपकी असमौर्ध्व रूपरस राशि ने मोहे स्पर्श कर लिया है तबसे यें प्राण बस आपके ही होकर रह गये है ॥ आपके सिवा अब किसी से कोई प्रयोजन ही नहीं रहा मोहे , हे आत्मरमणा ॥ मेरी चेतना का हर क्षण आपकी ही स्मृति में वास कर रहा है ॥ इस हृदय में आपका ही नित्य वास है ॥ आपका प्रेम ही तो प्राणों का अर्थ और सार है प्रिया जू ॥ इस कृपा रस रूपी प्रेम बिना जीवन प्राण रहित निस्तेज देह ही है मात्र ॥ आपकी प्रीति ही तो हृदय रूपी पुष्प की मधुर सुगंध है ॥ आपकी प्रीति ने ही जीवन को नित्य आनन्द उल्ल्लास उत्सव में रँग दिया है ॥ अनन्त काल से तृषित प्राणों को आपने अपने पावन स्पर्श से अपना कर मेरा होना सार्थक कर दिया है ॥ आपसे पृथक कैसा मेरा अन्य कोई जीवन ॥ वह क्षण जो आपकी स्मृति के बिना व्यतीत हो जाये वह कल्पों के समान प्राणहीन है ॥ प्रियतमे मेरी प्रत्येक अपूर्णता की पूर्णता आप हैं ॥ आपकी प्रीति ने ही इस अस्तित्व को पूर्णता दी है ॥ हे सुधानिधी राधिके मैं देह आप प्राण हैं मैं हृदय तो आप भाव हैं ॥ क्या हम दो हैं श्यामा ...नहीं ! नहीं ! मुझमें आपके होने से और आपमें मेरे होने से ही हम पूर्ण हैं ॥ हे प्राणवल्लरी मेरी आपके दिव्य गुणानुकथन मेरी जिह्वा को पवित्र करते हैं ॥ हृदय की स्थितियां जो तुम्हारे प्रेम ने श्रृंगारित की है वह वाणी से कहाँ प्रकाशित हो पाती है प्यारी ॥ हे रसरंगिनी हे प्रेममुदिते तुम्हारी प्रेमभीनी कृपादृष्टि से ही इन प्राणों में चेतना प्रवाहित होती है ॥तुमसे ही मिलकर मुझमें चेतन-आनन्द रूपी रस खिलता प्यारी ॥हे भामिनी आपके दर्शन ही सर्वरस सार है ॥किशोरी आप ही तो संपूर्ण कलायें हैं मेरे हृदय चंद्रमा की ॥ परिपूर्ण करती इसे आप ही ॥ आपके मधुर करुण आलिंगन में ही जीवन की पूर्ण विश्राम है मधुरेश्वरी ॥आपके रसमय प्रेम से ही तो चेतन हूँ मैं प्राणेश्वरी ।
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