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माधुर्या पियप्यारी सरसता

अनन्त माधुर्यरससार सिंधु से नवल रसनागरी के रसकेलि कुंज उन परमपुरुष श्रीकृष्णचन्द्र को रस याचक के अभीष्ट पद पर सुशोभित कर रहे हैं ।श्री निकुंजेश्वरी के मधुरातिमधुर रस से लुब्ध हुये ये रस लंपट कृष्ण मधुकर सौंदर्यलावण्यसारसमोज्जवला  सुधासिंधु श्री रसविलासिनी अति सुकोमल रसप्रिया के परम उज्जवल सौंदर्य का रसपान करने के लिये निकुंज की किंकरियों की अति दैन्यतापूर्ण अभ्यर्थना करते रहते हैं । निज समग्र ऐश्वर्य की पूर्णतया विस्मृति को प्राप्त हो चुके ये अनन्य रसिकशिरोमणि उन्हीं माधुर्यमधुरा रसउत्कर्षविधायिका विधुवदना रसिकनिधी श्रीगांधर्विका के रसोल्लासित सौंदर्य सिंधु में निम्मजन हेतु छटपटाते रहते हैं । ना जाने कौन कौन सी दैन्य चातुरी से ये चतुर शिरोमणि रसनागर श्रीराधिका किंकरियों की चरण वंदना किया करते हैं । इन मंजुल किंकरियों की कृपा ही उन्हें निकुंजेश्वरी का रसपूर्ण सानिध्य सुलभ करातीं हैं । कब ऐसी श्रीकृष्णचन्द्र की परम हृदयनिधी प्राणपोषिणी रसमूर्ती श्रीनित्यनिकुंजेश्वरी के निकुंज की सोहनी सेवा मोहे लभ्य हो सकेगी । हे मेरे चित्त तू त्रिभुवन के समस्त ऐश्वर्य चिंतन को तज अनन्य प्रीतीपूर्वक मात्र श्रीवृन्दावन का ही एकनिष्ठ हो आश्रय ग्रहण कर ले । उन्हीं श्रीवृंदावन रूपी प्रेमधाम में समस्त अभीष्टप्रदायिनी परम कल्याणी पूर्णअहैतु कृपारूपिणी अतिशय उदारा परम कोमल स्वभाव सदाआद्रचित्ता रसवर्षिणी श्रीराधिका रूपी दिव्य निधी विराजमान हैं । हे स्वामिनी ! उन विदग्धचूणामणि श्रीकृष्णचन्द्र के आपके श्री चरणकमलों में नत होकर एक बार आपके मधुमय गात के मधुर आश्लेषण की सदैन्य याचना करने पर आप उस परम रसमय आलिंगन की मधुरतम स्मृति से महामुदित होकर बाहर तिरछी भ्रूभंगिमा और कटाक्षों से कोप प्रदर्शित करती हुयी उर में महान आनन्द का अनुभव करते हुये नहीं नहीं कहकर वाम तथा दक्षिण भावो समन्वित रसदर्शन करवाती हैं , ऐसे आपके विचित्र रसमय दर्शन कब मुझे प्राप्त होंगे ! मैं कब आपकी नहीं नहीं कहती हुयी रस निर्झरित् करती हुयी वाणी को सुन सकुंगी ॥

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