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Showing posts from October, 2017

शुद्ध प्रेम विलास मूर्ति श्रीराधा

समस्त लोकों के समस्त प्रेम भावों से अतीत है श्री ब्रजपरिकरों का निरुपाधिक प्रेम । निरुपाधिक अर्थात् उपाधि रहित । ऐसो प्रेम जिसे न किसी रूप की न गुणादि के आश्रय की अवलंबन क...

माधुर्या पियप्यारी सरसता

अनन्त माधुर्यरससार सिंधु से नवल रसनागरी के रसकेलि कुंज उन परमपुरुष श्रीकृष्णचन्द्र को रस याचक के अभीष्ट पद पर सुशोभित कर रहे हैं ।श्री निकुंजेश्वरी के मधुरातिमधुर रस से लुब्ध हुये ये रस लंपट कृष्ण मधुकर सौंदर्यलावण्यसारसमोज्जवला  सुधासिंधु श्री रसविलासिनी अति सुकोमल रसप्रिया के परम उज्जवल सौंदर्य का रसपान करने के लिये निकुंज की किंकरियों की अति दैन्यतापूर्ण अभ्यर्थना करते रहते हैं । निज समग्र ऐश्वर्य की पूर्णतया विस्मृति को प्राप्त हो चुके ये अनन्य रसिकशिरोमणि उन्हीं माधुर्यमधुरा रसउत्कर्षविधायिका विधुवदना रसिकनिधी श्रीगांधर्विका के रसोल्लासित सौंदर्य सिंधु में निम्मजन हेतु छटपटाते रहते हैं । ना जाने कौन कौन सी दैन्य चातुरी से ये चतुर शिरोमणि रसनागर श्रीराधिका किंकरियों की चरण वंदना किया करते हैं । इन मंजुल किंकरियों की कृपा ही उन्हें निकुंजेश्वरी का रसपूर्ण सानिध्य सुलभ करातीं हैं । कब ऐसी श्रीकृष्णचन्द्र की परम हृदयनिधी प्राणपोषिणी रसमूर्ती श्रीनित्यनिकुंजेश्वरी के निकुंज की सोहनी सेवा मोहे लभ्य हो सकेगी । हे मेरे चित्त तू त्रिभुवन के समस्त ऐश्वर्य चिंतन को तज अनन्य प्रीतीपूर्वक...